भारत सरकार ने अब तक क्या किया है?
केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कोरोना के मामलों पर निगरानी रखने के लिए मंत्रियों के एक समूह (GoM) का गठन किया है.
चीन से भारत आने वाले लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है. किसी भी तरह की आशंका होने पर अलग रखकर उनका इलाज किया जा रहा है.
कोरोना वायरस से जुड़ी शिकायत और सुझाव के लिए एक कॉल सेंटर शुरू किया गया है. इसका नंबर है: 01123978046. ये 24 घंटे काम करता है.
ट्रैवल एडवाइज़री जारी की गई. ट्रैवल पॉलिसी में बदलाव किए गए.
21 हवाई अड्डों और सी पोर्ट (बंदरगाहों) पर यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग शुरू की गई है. थर्मल स्क्रीनिंग वो प्रक्रिया है जिसके तहत कोरोना जैसे वायरस के संक्रमण की जांच की जाती है.
एपिडेमिक डिज़ीजेस एक्ट, 1897
-इस क़ानून के तहत भारत में एचवनएनवन से संक्रमित लोगों को अलग रखे जाने और कुछ ख़ास अस्पतालों में उनका इलाज कराए जाने का प्रावधान है.
-यह एक्ट प्राइवेट अस्पतालों को एचवनएनवन से संक्रमित लोगों के लिए अलग रखे जाने की सुविधा की व्यवस्था करने और ऐसे मामलों की जानकारी सरकार तक पहुंचाने का निर्देश देता है.
उन्होंने कहा, "सरकार ने जो तैयारियां की हैं, उनका प्रभाव बहुत सीमित होगा. निगरानी भी सिर्फ़ उन्हीं लोगों पर रखी जा रही है जो या तो चीन से वापस आ रहे हैं या कोरोना से प्रभावित देशों की यात्रा पर जा रहे हैं.''
डॉक्टर धीरेन कहते हैं, ''कई बार कोरोना संक्रमण के शुरुआती दिनों में ख़ुद मरीज़ को इसका पता नहीं चल पाता और जब तक बीमारी की पुष्टि होती है, ये काफ़ी गंभीर हो चुका होता है. इसके अलावा कोरोना संक्रमण के टेस्ट की व्यवस्था भी सभी जगहों पर और सभी अस्पतालों में नहीं है, ये एक बड़ी समस्या है."
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "मेरे ख़याल से बाकी देशों के मुकाबले भारत में कोरोना का ख़तरा कम है क्योंकि एचवनएनवन परिवार वाले वायरस ज़्यादा तापमान में सर्वाइव नहीं कर पाते और भारत का मौसम अपेक्षाकृत ज़्यादा गर्म होता है. दूसरे, भारत के लोगों में पर्सनल हाइजीन (व्यक्तिगत साफ़-सफ़ाई) की आदतें बेहतर हैं, फिर चाहे ये हाथ धोना हो या नहाना-धोना. ये आदतें कोरोना संक्रमण से बचाने में काफ़ी मददगार साबित होंगी.''
डॉक्टर सुरेश राठी का मानना है कि अभी भारत में ऐहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं जो इस स्तर के लिए पर्याप्त हैं.
डॉक्टर धीरेन गुप्ता, इन दावों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं.
उन्होंने कहा, "हम सिर्फ़ ये सोचकर चिंतामुक्त नहीं हो सकते कि भारत का मौसम गर्म है और इसलिए कोरोना वायरस यहां सर्वाइव नहीं कर पाएगा. बाकी चीज़ों की तरह भारत का मौसम भी विविधतापूर्ण है. कहीं गर्म तो कहीं ठंडा. यहां तक कि राजस्थान में भी दिन में मौसम गर्म होता है और रात में अपेक्षाकृत ठंडा. मेघालय जैसे राज्यों में बारिश होती रहती है. ऐसे में वायरस के संक्रमण की आशंका को ख़ारिज नहीं किया जा सकता."
डॉक्टर धीरेन कहते हैं कि एवोल्यूशन के सिद्धांत के हिसाब से वायरस भी अलग-अलग क्षेत्रों में आने पर ख़ुद को वहां के वातावरण के हिसाब से ढालेगा.
वो कहते हैं, "भारतीयों की व्यक्तिगत सफ़ाई की आदतें बेहतर ज़रूर हैं लेकिन वो बहुत अच्छे हालात में नहीं रहते. यहां झुग्गियों में रहने वाली सघन आबादी है और एक-एक कमरे में रहने वाले चार-पांच लोग. ऐसे में संक्रमण की आशंका भी बढ़ जाती है."
तो फिर बचाव के लिए क्या तैयारियां की जाएं?
डॉक्टर धीरेन कहते हैं कि चूंकि हम संक्रमण फैलने पर इसे संभाल पाने की स्थिति में नहीं होंगे इसलिए बेहतर है कि इससे बचाव की तैयारियां की जाएं.
इसके लिए वो चीन से सबक लेते हुए पहले से ही ऐसे कुछ अस्पताल बनाए जाने का सुझाव देते हैं जहां संक्रमित मरीज़ों को अलग (isolation) में रखने की व्यवस्था हो.
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वो कहते हैं कि ऐसे अस्पतालों को बनाने की तैयारी आज और अभी से शुरू कर दी जानी चाहिए.
डॉक्टर धीरेन कहते हैं, "अगर देश के पांच हिस्सों (उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम और केंद्र) में ऐसे अस्पताल बना दिए जाएं और उन्हें तैयार रखा जाए तो यह काफ़ी मददगार होगा. इन अस्पतालों को सामान्य स्थिति में इस्तेमाल न किया जाए लेकिन जैसे ही कोरोना जैसी संक्रामक महामारी के मामले सामने आएं, मरीज़ों को इनमें शिफ़्ट किया जाए. भारत में अभी ऐसे बहुत कम अस्पताल हैं जहां मरीज़ों को आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था हो. इसलिए इस सुविधा का प्रसार बेहद ज़रूरी है."
जल्दी से जल्दी अस्पताल या विशेष स्वास्थ्य केंद्र बनाने के लिए भारतीय सेना की मदद भी ली जा सकती है.
कोरोना संक्रमण की जांच के लिए इस्तेमाल होने वाली थर्मल स्क्रीनिंग की सुविधा ज़्यादा से ज़्यादा अस्पतालों में उपलब्ध कराई जाए.
व्यक्तिगत स्तर पर भी कोरोना संक्रमण को लेकर जागरूकता बरती जाए. संक्रमण के लक्षणों और बचाव के बारे में लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी दी जाए.
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केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कोरोना के मामलों पर निगरानी रखने के लिए मंत्रियों के एक समूह (GoM) का गठन किया है.
चीन से भारत आने वाले लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है. किसी भी तरह की आशंका होने पर अलग रखकर उनका इलाज किया जा रहा है.
कोरोना वायरस से जुड़ी शिकायत और सुझाव के लिए एक कॉल सेंटर शुरू किया गया है. इसका नंबर है: 01123978046. ये 24 घंटे काम करता है.
ट्रैवल एडवाइज़री जारी की गई. ट्रैवल पॉलिसी में बदलाव किए गए.
21 हवाई अड्डों और सी पोर्ट (बंदरगाहों) पर यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग शुरू की गई है. थर्मल स्क्रीनिंग वो प्रक्रिया है जिसके तहत कोरोना जैसे वायरस के संक्रमण की जांच की जाती है.
एपिडेमिक डिज़ीजेस एक्ट, 1897
-इस क़ानून के तहत भारत में एचवनएनवन से संक्रमित लोगों को अलग रखे जाने और कुछ ख़ास अस्पतालों में उनका इलाज कराए जाने का प्रावधान है.
-यह एक्ट प्राइवेट अस्पतालों को एचवनएनवन से संक्रमित लोगों के लिए अलग रखे जाने की सुविधा की व्यवस्था करने और ऐसे मामलों की जानकारी सरकार तक पहुंचाने का निर्देश देता है.
कितना काम आएंगी ये तैयारियां?
डॉक्टर धीरेन सरकार की इन तैयारियों को नाकाफ़ी बताते हैं.उन्होंने कहा, "सरकार ने जो तैयारियां की हैं, उनका प्रभाव बहुत सीमित होगा. निगरानी भी सिर्फ़ उन्हीं लोगों पर रखी जा रही है जो या तो चीन से वापस आ रहे हैं या कोरोना से प्रभावित देशों की यात्रा पर जा रहे हैं.''
डॉक्टर धीरेन कहते हैं, ''कई बार कोरोना संक्रमण के शुरुआती दिनों में ख़ुद मरीज़ को इसका पता नहीं चल पाता और जब तक बीमारी की पुष्टि होती है, ये काफ़ी गंभीर हो चुका होता है. इसके अलावा कोरोना संक्रमण के टेस्ट की व्यवस्था भी सभी जगहों पर और सभी अस्पतालों में नहीं है, ये एक बड़ी समस्या है."
भारत में असर नहीं कर पाएगा कोरोना?
हालांकि एपिडेमियॉलजिस्ट (महामारी विशेषज्ञ) और हैदराबाद स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ में असोसिएट प्रोफ़ेसर डॉक्टर सुरेश कुमार राठी का मानना है कि भारत को कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से बहुत ज़्यादा चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है.उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, "मेरे ख़याल से बाकी देशों के मुकाबले भारत में कोरोना का ख़तरा कम है क्योंकि एचवनएनवन परिवार वाले वायरस ज़्यादा तापमान में सर्वाइव नहीं कर पाते और भारत का मौसम अपेक्षाकृत ज़्यादा गर्म होता है. दूसरे, भारत के लोगों में पर्सनल हाइजीन (व्यक्तिगत साफ़-सफ़ाई) की आदतें बेहतर हैं, फिर चाहे ये हाथ धोना हो या नहाना-धोना. ये आदतें कोरोना संक्रमण से बचाने में काफ़ी मददगार साबित होंगी.''
डॉक्टर सुरेश राठी का मानना है कि अभी भारत में ऐहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं जो इस स्तर के लिए पर्याप्त हैं.
डॉक्टर धीरेन गुप्ता, इन दावों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं.
उन्होंने कहा, "हम सिर्फ़ ये सोचकर चिंतामुक्त नहीं हो सकते कि भारत का मौसम गर्म है और इसलिए कोरोना वायरस यहां सर्वाइव नहीं कर पाएगा. बाकी चीज़ों की तरह भारत का मौसम भी विविधतापूर्ण है. कहीं गर्म तो कहीं ठंडा. यहां तक कि राजस्थान में भी दिन में मौसम गर्म होता है और रात में अपेक्षाकृत ठंडा. मेघालय जैसे राज्यों में बारिश होती रहती है. ऐसे में वायरस के संक्रमण की आशंका को ख़ारिज नहीं किया जा सकता."
डॉक्टर धीरेन कहते हैं कि एवोल्यूशन के सिद्धांत के हिसाब से वायरस भी अलग-अलग क्षेत्रों में आने पर ख़ुद को वहां के वातावरण के हिसाब से ढालेगा.
वो कहते हैं, "भारतीयों की व्यक्तिगत सफ़ाई की आदतें बेहतर ज़रूर हैं लेकिन वो बहुत अच्छे हालात में नहीं रहते. यहां झुग्गियों में रहने वाली सघन आबादी है और एक-एक कमरे में रहने वाले चार-पांच लोग. ऐसे में संक्रमण की आशंका भी बढ़ जाती है."
तो फिर बचाव के लिए क्या तैयारियां की जाएं?
डॉक्टर धीरेन कहते हैं कि चूंकि हम संक्रमण फैलने पर इसे संभाल पाने की स्थिति में नहीं होंगे इसलिए बेहतर है कि इससे बचाव की तैयारियां की जाएं.
इसके लिए वो चीन से सबक लेते हुए पहले से ही ऐसे कुछ अस्पताल बनाए जाने का सुझाव देते हैं जहां संक्रमित मरीज़ों को अलग (isolation) में रखने की व्यवस्था हो.
See Also : Hand Sanitizer Ghar Par Kaise Banaye?
डॉक्टर धीरेन कहते हैं, "अगर देश के पांच हिस्सों (उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम और केंद्र) में ऐसे अस्पताल बना दिए जाएं और उन्हें तैयार रखा जाए तो यह काफ़ी मददगार होगा. इन अस्पतालों को सामान्य स्थिति में इस्तेमाल न किया जाए लेकिन जैसे ही कोरोना जैसी संक्रामक महामारी के मामले सामने आएं, मरीज़ों को इनमें शिफ़्ट किया जाए. भारत में अभी ऐसे बहुत कम अस्पताल हैं जहां मरीज़ों को आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था हो. इसलिए इस सुविधा का प्रसार बेहद ज़रूरी है."
जल्दी से जल्दी अस्पताल या विशेष स्वास्थ्य केंद्र बनाने के लिए भारतीय सेना की मदद भी ली जा सकती है.
कोरोना संक्रमण की जांच के लिए इस्तेमाल होने वाली थर्मल स्क्रीनिंग की सुविधा ज़्यादा से ज़्यादा अस्पतालों में उपलब्ध कराई जाए.
व्यक्तिगत स्तर पर भी कोरोना संक्रमण को लेकर जागरूकता बरती जाए. संक्रमण के लक्षणों और बचाव के बारे में लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी दी जाए.
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